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मैं और कुछ नहीं...: जनवरी 2010
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मैं और कुछ नहीं. खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम. और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे. गुरुवार, 7 जनवरी 2010. जानते हो? जानते हो. एक दबी हुई इच्छा है कि. मै ऑफिस से आऊँ. और तुम घर पर रहना. आकर तुम्हे कहूँ. जान, आज काम ज्यादा था. इतना थक गयी की. कि पुछो मत. तुम्हारा ही काम अच्छा है. घर मे रहते हो. सारा दिन सोये रहते हो. जानते हो. जी चाहता है कि. मै भी मचल के कहूँ. हमारा भारतीय परिधान. बन इठलाते हो. Links to this post.
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मेरा पसंदीदा संग्रह (My Favorite Collection): August 2008
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मेरा पसंदीदा संग्रह (My Favorite Collection). Saturday, August 9, 2008. पसंद -18 (सच है महज़ संघर्ष ही). सच हम नही, सच तुम नही. महज़ संघर्ष ही. संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम. जो नत हुआ वो मृत हुआ, ज्यों वृन्त से झर-कर कुसुम. जो लक्ष्य भूल रुका नही,. जो हार देख झुका नही. जिसने प्रणय पाथेय माना, यह जीत उसकी ही रही. ऐसा करो के प्राणों में ना कहीँ जड़ता रहे. जो है जहाँ चुपचाप अपने आप से लड़ता रहे. जो भी परिस्थितियाँ मिलें,. जो साथ फूलों के चले,. आकाश सुख देगा नही,. Labels: कविता.
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मेरा पसंदीदा संग्रह (My Favorite Collection): पसंद ४२ - ओ मेरी उदास पृथ्वी
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मेरा पसंदीदा संग्रह (My Favorite Collection). Wednesday, June 6, 2012. पसंद ४२ - ओ मेरी उदास पृथ्वी. घोड़े को चाहिए जई. फुलसुँघनी को फूल. टिटिहिरी को चमकता हुआ पानी. बिच्छू को विष. और मुझे? गाय को चाहिए बछड़ा. बछड़े को दूध. दूध को कटोरा. कटोरे को चाँद. और मुझे? मुखौटे को चेहरा. चेहरे को छिपने की जगह. आँखों को आँखें. हाथों को हाथ. और मुझे? ओ मेरी घूमती हुई. उदास पृथ्वी. मुझे सिर्फ़ तुम. तुम.तुम. केदारनाथ सिंह. Labels: कविता. हिन्दी. Earn from Ur Website or Blog thr PayOffers.in! I’m looking forward ...
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मैं और कुछ नहीं...: मई 2009
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मैं और कुछ नहीं. खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम. और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे. सोमवार, 25 मई 2009. पत्रो वाली दास्तां. मम्मी यह पुराने लिफाफो का पुलिंदा कैसा है? किसके पत्र हैं यह सब? यह तुम्हारे पापाजी और मेरे लिखे पत्र हैं।" मम्मी ने प्यार से बताया।. ओ, वाह! हमारा क्या बेटा? प्रिये,. कहो समझ जाओगी ना? तुम्हारा. ओ ओ फिर मम्मा आपने क्या जवाब दिया? प्राणनाथ,. सिर्फ आपकी. ठीक है पापा जी...Links to this post.
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मैं और कुछ नहीं...: अक्तूबर 2008
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मैं और कुछ नहीं. खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम. और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे. शनिवार, 18 अक्तूबर 2008. करवा चौथ पर मेरे विचार. कल रात करवाचौथ पर बहुतों ने अपने विचार दिये, मेरे विचार जानने हेतु क्लिक कीजिए।. शुक्रिया :). सत्यवती जी. मेरे विचार को पसन्द करने के लिये शुक्रिया :). 2 टिप्पणियां:. Links to this post. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. नई पोस्ट. Moltol.in ...
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मैं और कुछ नहीं...: अक्तूबर 2007
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मैं और कुछ नहीं. खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम. और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे. गुरुवार, 25 अक्तूबर 2007. गाव के कुछ मजेदार किसे. हाँ कुछु कहे के पहिले ईहो बता देत बानी की, ई किसा हम कबो अपना आँखिन नईखी देखले, बस सुनल सुनावल बतिया हटे-. चु चु. आ जा. अर्रे आ जा ना. अभी ई किसा निमन लागि तो फेरू ऐसन एगो किसा ले के आईबी.:). 9 टिप्पणियां:. Links to this post. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! नई पोस्ट. मेरा प...आगे...
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मैं और कुछ नहीं...: सितंबर 2008
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मैं और कुछ नहीं. खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम. और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे. बुधवार, 10 सितंबर 2008. लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई. अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई. चुपके से किसी तन्हा सी घड़ी में. याद आती है, थी जो मुलाकात हुई. सालती है दर्द-ए-दिल को ये खा़मोशी. आवाज दो कि अब ये ज़र्द रात हुई. कहो कैसे जिये" गरिमा" तुम्हारे बिना. तुम बिन अन्धेरी ये कायनात हुई. नहीं लौट सकते तो मत आओ. Links to this post. Moltol.in...
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मैं और कुछ नहीं...: सितंबर 2012
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मैं और कुछ नहीं. खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम. और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे. शुक्रवार, 14 सितंबर 2012. हिंदी दिवस विशेष. एक दिन हिंदी को देकर उसका अपमान कर रहे हैं! 2 टिप्पणियां:. Links to this post. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). हुर्रे. ब्लॉग आर्काइव. अक्तूबर. आईए जिनî...
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मैं और कुछ नहीं...: फ़रवरी 2008
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मैं और कुछ नहीं. खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम. और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे. बुधवार, 20 फ़रवरी 2008. हाँ कुछ तो पढ़ा. चलते चलते अनुराधा जी बोली ये पढा. अभी मुझे ठीक से समझ मे नही आ रहा है कि मैने क्या पढ़ा. और पढ़ा तो क्या पढ़ा? या जिसने लिखा लिखते वक्त उसके दिमाग मे क्या चल रहा होगा? इन सवालो के जवाब मे उलझ गयी हूँ।. इसका जवाब भी नही है मेरे पास।. कल शाम पड़ोसी अंकल से ऐसे बì...वो दोनो बतì...या आप अपन...