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निर्झर'नीर!: March 2015
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! गुरुवार, 26 मार्च 2015. जरुरी है". Posted by निर्झर'नीर. 8230;………………………।. अँधेरे गर ना होंगे तो. ये जुग्नू भी नहीं होंगे. उजाले भी जरुरी है. अँधेरे भी जरूरी है।. अगर ये दिन जरूरी है. तो रजनी भी जरूरी है. ये चंदा भी जरुरी है. ये तारे भी जरूरी है।. सरिता भी जरूरी है. ये सागर भी जरूरी है. अगर जीवन जरूरी है. तो ये जल भी जरुरी है।. ये किस्तें भी जरुरी है. ये रिश्ते भी जरुरी है. परिवर्तन '. इस तरह भी ना कहो. बाद मु...
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निर्झर'नीर!: October 2011
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011. किसी की आँख से आंसू यूँ ही. Posted by निर्झर'नीर. किसी की आँख से आंसू यूँ ही तो बह नहीं सकता! कुछ ऐसे जख्म होते है जिन्हें दिल सह नहीं सकता! उन्हें मुझसे शिकायत है कि मैं ख़ामोश रहता हूँ! मगर कुछ लोग कहते है कि मैं चुप रह नहीं सकता! हकीक़त है की हर बाजी अभी तक है मेरे हक में! बड़ा ज़ालिम जमाना है अभी कुछ कह नहीं सकता! बहुत मुश्किल. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. निर्झर'नीर. मेरे...
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निर्झर'नीर!: December 2010
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! बुधवार, 15 दिसंबर 2010. Posted by निर्झर'नीर. तू है ज़रदिमाग तुझे क्या कहूं. मेरे दर्द-ए-दिल का फ़लसफा. लिखी है मेरी शक्ल पे. मेरे रंज-ओ-गम की दास्ताँ. ना तो राहगुज़र के है नक्श-ए-पाँ. ना ही मंजिलों की कुछ खबर. मैं तो गर्द-ए-सफ़र का ग़ुबार हूँ. है ये सिम्त-ए-गैबाना. जो ज़हीन थे चले गए. जला-जला के बस्तियां. में आग से लड़ता रहा. एक जुर्म सा करता रहा. घिरी तीरगी मेरे चार सू. इस रात की सुबह तो कर. नई पोस्ट. मेरे...हाथ...
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निर्झर'नीर!: April 2010
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! बुधवार, 14 अप्रैल 2010. Posted by निर्झर'नीर. ज़हन और दिल पे. तेरी यादों के साये. इस क़दर छाये है. पहाड़ी कंदराओं के. आखिरी हिस्से में. छाया हुआ अँधेरा. वक़्त भी खड़ा है. पाएदार की तरह. एक ही जगह पर. ना सहर होती है. ना शाम ढलती है. उम्मीद की किरण भी. दो कदम चलकर. दम तोड़ देती है. लगता है ये रूह. जिस्म से आज़ाद होकर भी. जन्मों तक भटकती रहेगी. इन अँधेरी गुफाओं में. ए काश:तुम आते. मुझे आज़ाद करने. घनी क़ैद से. नई पोस्ट. क्य&...
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निर्झर'नीर!: April 2012
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! मंगलवार, 3 अप्रैल 2012. आईने में ज़िन्दगी. Posted by निर्झर'नीर. भीख मांग रहा है फिल्म ‘मदर इंडिया’ का जमींदार. उसकी आवाज़ बहुत हल्की है. उसकी बातों में बहुत तल्खी है. वो भी तारा था चमकता नभ का. बात सच है ये मगर कल की है. धूल चेहरे पे ज़मी है अब तक. उसकी आँखों में नमी है अब तक. उसने रिश्तों को जिया है शायद. उसने विष पान किया है शायद. उसमें ज़ज्बात अभी बाकी है. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. भटका राही. हाथो...
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निर्झर'नीर!: April 2013
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! मंगलवार, 23 अप्रैल 2013. धन की खातिर. Posted by निर्झर'नीर. बहुत दिन बाद एक कोशिश. धन की खातिर लोग यहाँ. सुख-चैन नींद, खोते देखे! दौलत-शौहरत पाकर भी. कुछ लोग यहाँ, रोते देखे! उल्लू जैसी हो गयी फितरत. रात जगे दिन सोते देखे! इंसानों की जात ना पूछो. मन मैला तन धोते देखे! के गैरों का गिला करूँ, जब. अपने ही कांटे बोते देखे! मूल्य रहे ना मान रहा, बस. देखे पीर फ़कीर 'नीर' सब. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. निर्झर'नीर. हाथो...क्य...
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निर्झर'नीर!: July 2013
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! रविवार, 28 जुलाई 2013. जीना है तो मरना होगा. Posted by निर्झर'नीर. 8230;………………………. पर्वत-पर्वत टूट रहे. घर-द्वारे सब छूट रहे. कैसे उनको इन्सां कह दूँ. बेबस को जो लूट रहे. खतरे में अब देश पड़ा है. देश का नेता मौन खड़ा. कुछ तो आखिर करना होगा. जीना है तो मरना होगा! इश्क-मोहब्बत की सौगातें. कलियाँ-भवरों की ये बातें. इन बातों का वक़्त नहीं. जो उबले ना,वो रक्त नहीं. लावा बन के धिकल रहा. नीर-नयन से निकल रहा. नई पोस्ट. हाथ&#...
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निर्झर'नीर!: September 2011
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! सोमवार, 12 सितंबर 2011. सफ़र और मंजिल. Posted by निर्झर'नीर. चलो चलते है. एक बार फिर. वापिस लौट के. वहीँ, जहाँ से दौड़े थे. जानिब-ए-मंजिल. राहों से बेखबर. रहगुज़र से बेरब्त. अकेले-अकेले. मिली जो मंजिल. तो ये जाना कि. जिंदगी के टुकड़े तो. सफ़र में ही छूट गए. इस बार चलना है. धीरे-धीरे. रिश्तों की डोर थामे. सफ़र की ख़ुशबू और रंगों से. ज़िन्दगी का दामन सजाकर. जीना है. हर उस अहसास को. जो छूट गया इस बार. नई पोस्ट. हाथ...
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निर्झर'नीर!: February 2011
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निर्झर'नीर! इस नीर - ए -चश्म में सागर की पीर है! ग़र ना हो तुझे यकीं तो चख के देख ले! गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011. लकीर-ए-दस्त का लिक्खा. Posted by निर्झर'नीर. लकीर-ए-दस्त का लिक्खा समझ आया नहीं मुझको! तू ही मुज़रिम तू ही मुंसिफ़, गुनाह तेरा सजा मुझको! ये मौसम का बदलना तो, मुझे भी रास आता है! यूँ अपनों के बदलने का,चलन भाया नहीं मुझको! पढ़े शाम-ओ-सहर जिसने क़सीदे शान में मेरी! वो ही अब ढूंढता है हाथ में खंजर लिए मुझको! नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. आप आये बहार आयी. निर्झर'नीर. शबनमी मोती. मेरे...
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