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साहित्यालोचन: *** भारतीय सामंतवाद
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Tuesday, May 12, 2009. भारतीय सामंतवाद. भिन्नता है तो कितनी? धर्म और धार्मिक संस्थाएँ यूरोपीय ढंग का वर्चस्व भारत में स्थापित क्यों नहीं कर सकीं? मिलकर सामाजिक सोपानिकता की जड़ता को और अधिक सुदृढ़, निरंकुश और आत्तायी बना दिया।. 48 ऋग्वेद, 8/8/3. 49 के. दामोदरन, भारतीय चिंतन परम्परा, पृ॰ 209. 50 वही, पृ॰ 208. 51 रोमिला थापर, भारत का इतिहास, पृ॰ 221. 53 हरबंस मुखिया, मध्यकालीन भारत: नए आयाम, पृ॰ 87. 54 मार्क ब्लाख, समांती समाज, भाग-2, पृ॰ 219. 55 दर्शन कोश, पृ॰ 702. 61 वही, पृ॰ 211-212. इस आलेख क...
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साहित्यालोचन: *** खोजने दो मुझे अपना खुद का वसंत !
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Monday, April 15, 2013. खोजने दो मुझे अपना खुद का वसंत! ज के साहित्य में वसंत की पड़ताल की जाए तो निश्चित ही यह समझ बनती है कि कहीं साहित्य से उसका सम्बन्ध ऐतिहासिक तो नहीं था! साहित्य में वसंत की यह परंपरा एक लम्बे समय या कालान्तारों के. साथ चलती रही लेकिन अपने समकालीन पड़ाव पर आते हुए वह इस तरह से बिखरी कि उसका अनुमोदन. गैर-मानवतावादी प्रवृत्तियों से! कह गए सारे अग्रज ऋतु वसंत की. है मदमाती छलकाती यौवन सौन्दर्य प्रेम का. क्या सचमुच यही वसंत है! डॉ. अरुणाकर पाण्डेय. आभार सहित). April 15, 2013 at 10:44 PM.
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साहित्यालोचन: *** 'सिंदूर तिलकित भाल' की व्याख्या
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Thursday, August 14, 2008. सिंदूर तिलकित भाल' की व्याख्या. सिन्दूर. नागार्जुन. परिस्थिति. तुम्हारा. सिंदूर. व्यक्ति. चाहेगा. उच्छ्वास. डाल दे. निःश्वास. किन्तु. चिंता. प्रत्यक्ष. स्मृति. विस्मृति. भींगी. स्मृति. लीचियां. मिथिला. कुमुदिनि. नीलिमा. व्यक्ति. किन्तु. प्रवासी. कहेंगे. मरूंगा. देंगे. निर्बाध. सुनोगी. रहूंगा. सांध्य. पश्चिमांत. लालिमा. सुमुखि. तुम्हारा. सिंदूर. व्याख्या). सिंदुर तिलकित भाल. कालिदास. प्रो. अजय तिवारी. से साभार. आप देख सकते हैं इनकी पुस्तक. Posted by भास्कर रौशन. परम्पर...
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साहित्यालोचन: मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया
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Thursday, July 17, 2008. मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया. रेणु ने जिस अंचल को `मैला आंचल' में नायकत्व प्रदान किया है, वह कैसा अंचल है? लेकिन धरती माता अभी स्वर्णांचला है! दुलारचंद कापरा को जानते हो न? मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया. एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री ने मानव-चरित्र पर समाज को महत्त्व देने के कारण संथालों को ज़मीन लौटाने...मुट्ठी खोलिए! बस्ता दीजिए बालदेवजी! मैं जलकर मर जाऊंगी, मगर! हे भगवान! सतगुरु हो! जै गांधीजी! बाबा .जै बावनदासजी! लछमी रो रही है. नंदकिशोर नवल,. वागर्थ अंक १२७. Tags : #मै...
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साहित्यालोचन: *** ‘क़िस्सा कोताह’ : एक कवि की बहक
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Sunday, June 2, 2013. 8216;क़िस्सा कोताह’ : एक कवि की बहक. क़िस्सा क्या है. कहानी का कच्चा माल. कहानियों के इस कच्चे माल को बरतने में राजेश जोशी ने कोई कोताही नहीं बरती और अपने पाठकों के लिए विधागत सीखचों के बंधन से मुक्त एक. मुक्त-सा गल्प. रच डाला. यह उन्मुक्तता. किस्सा कोताह. में छाई हुई है. मुक्त-सा इसलिए भी कि. किस्सों को कहानी बनने में वक्त लगता है. एक पूरी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. हो जाते हैं. इस अर्थ में. किस्सा कोताह. एक अजीब-सी लत. किस्सा कोताह. बनते रहना. पाँच किस्...इसमें द&#...क़&...
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साहित्यालोचन: *** कबीर के बहाने आधुनिकता पर एक बहस
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Wednesday, November 20, 2013. कबीर के बहाने आधुनिकता पर एक बहस. बीर अपने समय में आधुनिक थे. यह कहने का फैशन. सा चल पड़ा है। इस कथन के पीछे जो विचार. महावीर या बुद्ध इस बर्बर और अवमानवीकृत आधुनिकता का ठप्पा अपने ऊपर लगवाना भी चाहते हैं या नहीं. चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोए। दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए. 2404; दूसरा सवाल यह है कि क्या हम आधुनिक हैं. और क्या जैसे हम आधुनिक हैं. वैसे आधुनिक कबीर हो सकते थे. 8216; कबीर. ब्रिटेन. फ्रांस. 8216; अकथ कहानी प्रेम की. 8216; उत्तर आधुनिक. 8217; पद का इस...
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साहित्यालोचन: *** सुख की उपभोक्तावादी परिभाषाओं के विरूद्ध : ईदगाह
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Monday, September 1, 2014. सुख की उपभोक्तावादी परिभाषाओं के विरूद्ध : ईदगाह. आधापेट खा पाना. भरपेट खाने को पा जाना. प्रेमचंद के लिये विपन्नता से यह बेखबरी. यह संतोष और धैर्य वस्तुतः क्या अर्थ रखते हैं. अभाव और गरीबी का महिमामंडन जो वस्तुतः गरीबी के ख़िलाफ़ एक कवच की तरह इस्तेमाल होना है. दूसरे को दिखाना. किन लोगों के लिये अवसर. कुछ होता हुआ प्रत्यक्ष दिखता है. कुछ मिल चुका होता है. इन डिफेंस ऑफ़ ग्लोब्लाइज़ेशन. के आधार पर।. जब आवे संतोषधन सब धन धूरि समान. तेन त्यक्तेन के अन&...पता है : s. प्रा...
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साहित्यालोचन: परम्परा का मूल्यांकन
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Sunday, June 8, 2008. परम्परा का मूल्यांकन. नयी सभ्यता को पुरानी सभ्यता की ज़रूरत क्या है? रामविलास शर्मा,. परम्परा का मूल्यांकन. से साभार. Posted by भास्कर रौशन. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Share on Facebook'. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Share on Twitter'. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Add to Delicious'. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Digg This Post'. परम पर क म ल य कन. पता है : s. गा...
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साहित्यालोचन: *** एक बीज की तरह : नरेश सक्सेना
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Wednesday, June 18, 2014. एक बीज की तरह : नरेश सक्सेना. विता हमारी सांस्कृतिक धरोहर है. हमारे अपने समय का ऐसा दस्तावेज़. नरेश सक्सेना की पहली कविता सन ६० में छपी थी और पहला काव्य-संग्रह समुद्र पर हो रही है बारिश. २००१ में. आज लगभग १२-१३ वर्ष बाद नरेश सक्सेना का दूसरा काव्य-संग्रह सुनो चारूशीला. सुनो चारूशीला,. उक्त संग्रह में सेतु. कविता इसी पर है :-. सेनाएँ. जब सेतु से गुज़रती हैं. तो सैनिक अपने क़दमों की लय तोड़ देते हैं. उठ खड़ा होता है. लय से उन्मत्त. में नरेश सक्सेन...कविता जित...सूखे...
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साहित्यालोचन: दलित आत्मकथाओं का सच
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Wednesday, July 29, 2009. दलित आत्मकथाओं का सच. क्या लदोई और जूठन खाया गैर दलित लिख सकता है उसी अनुभूति के साथ जिस अनुभूति के साथ इसके भोक्ता रहे दलित लेखक? क्या ये दलित साहित्यकार किसी दबाव में आत्मकथाएं नहीं लिख रहे हैं? शरण कुमार लिम्बाले की पत्नी यह प्रश्न करती हैं ‘‘कि यह सब लिखने से क्या फायदा? तुम क्यों लिखते हो? कौन अपनाएगा हमारे बच्चों को? अपने को भंगी, चमार और पासी कह सके? सन्दर्भ ग्रन्थ सूची. 2 कथाक्रम, जनवरी-मार्च, 2005, पृ0-63. 6चिन्तन की परम्R...8चिंतन की...12चिæ...