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अपनों का साथ: June 2013
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Wednesday, June 19, 2013. धरती के ऊपर नल है. उसमें आता जल है. जल को निहारने को. प्यासी ये धरती आई. पर बिखर गई. उस दर्रे की गूंज से. और फूट पड़ा जल का दरिया. चारों ओर. तबाही का मंज़र. दिखाने को. पवित्र धरती पवित्र पानी. फिर क्यों है इसकी. अजीब कहानी. मानो तो अमृत की धारा. नहीं तो. जीवन का अंतिम कहानी. धरती के ऊपर नल है. उसमे आता जल है. जो ले डूबा इस बार. ना जाने कितनी ही जिंदगानी. बन कर महाकाल. पथराए कानन ने. चट्टानों का सीना भी. छलनी किया. थी यहीं एक बस्ती. थे कुछ मकान. और पुल, कल तक. करते हुए. गया, ...
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अपनों का साथ: May 2014
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Friday, May 9, 2014. माँ कैसे जान लेती है दिल की हर बात. पर,खुद में सम्पूर्ण. कैसे जान लेती है. दिल की हर बात. हर जज़्बात को. जीवन चक्र. शैशव से यौवन तक के. और आँखों में. झलकते किसी के प्यार को. शांत, सौम्य. पर दिल से धरती सी मजबूत. उसकी फुलवारी में महकते. हर फूल की. महक को वो कभी. खोने नहीं देती और. अपने मौन को टूटने नहीं देती. उसकी आँखों के पानी को. जब तक समझो. वो भाप बन कर उड़ चुके होते हैं. वो,हर दुख को झाड लेती है. जीवन जीने के लिए. जो पल-पल अहसास करवाती है. अपने होने का. वो ही साइड. बेगान...सजे...
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अपनों का साथ: November 2013
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Wednesday, November 13, 2013. आप सब आमंत्रित हैं. हम गुलमोहर के रचनाकर. अपनी खुशियों में करना चाहते हैं. आपको शामिल . चाहते हैं आपकी शुभकामनाएँ. आपकी गरिमामय उपस्थिति. आप सबका प्रदीप्त सान्निध्य।. तो आएँगे न . जरूर आइएगा. इंतज़ार करेंगे हम सब. 30 कवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह "गुलमोहर". का विमोचन. सान्निध्य :. लीलाधर मंडलोई, वरिष्ठ कवि. सुमन केशरी अग्रवाल, वरिष्ठ कवयित्री. लक्ष्मी शंकर वाजपेई, वरिष्ठ कवि-गीतकार. ओम निश्चल, वरिष्ठ कवि-लेखक. तृतीय तल. दिन : 16 नवम्बर 2013. आभा खरे. मेरा ...जौन...
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अपनों का साथ: April 2014
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Tuesday, April 29, 2014. उसकी आखिरी रात में. उसकी आखिरी रात में. साँसों का चलना. साँसों का रुकना. इसी के बीच. रुक-रुक के चलती जिंदगी. जिंदगी की आखिरी रात. सो कर नहीं बिताना चाहती. वो भूल जाना चाहती है. वो एक औरत है. एक स्त्री, एक माँ है. एक बेटी और एक बहन है. किसी के घर की. वो खुद के लिए एक संसार. रचना चाहती है. उसके आँसू, उसकी हँसी. और उसके दर्द की परछाई. जिस में छिपी है उसकी जिंदगी की सच्चाई. जिस से वो. बाहर निकलना चाहती है. जो फर्ज़ और दायित्व के नाम पर. वो पत्थर तोड़ती,. कम ही आँका. उसे अपने. इन बí...
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अपनों का साथ: February 2014
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Sunday, February 2, 2014. जिंदगी .खुशी का वो पल. जिंदगी. जिंदगी ' के फरवरी अंक में ' गुलमोहर' को भी इसी श्रेणी में शामिल किया गया है. 31 जनवरी को ' अहा! Labels: आह जिंदगी में पुस्तक की चर्चा. लेख .कुछ खुशी के पल. Subscribe to: Posts (Atom). मेरा नया ठिकाना. क्षितिजा. क्षितिजा .मेरा पहला काव्य संग्रह. ऐ-री-सखी (दूसरा काव्य संग्रह और अरुणिमा स्वत्रंत संपादन में पहला कदम ). जिंदगी .खुशी का वो पल. पसंदीदा ब्लॉग 01. दयालुता. अजित गुप्ता का कोना. तीखी कलम से. चर्चामंच. कल सुनना बाबू. नारी , NAARI. तितल&...
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अपनों का साथ: July 2013
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Monday, July 29, 2013. एक चिट्ठी अपने प्रिय के नाम. मेरा तकिया कलाम) क्या मैं ऐसी हूँ कि हर किसी को मुझ से सिर्फ शिकायत रहती है '. ये सपने इतना शोर क्यों करते हैं? पर मेरी सबसे बडी सोच' तुम ' हो कि तुम कब मुझे खुद सा समझोगे कि ' तुम्हारे जीवन में 'मैं कौन हूँ ' तुम्हारे लिए? आगे भी सफर ऐसे ही जारी रहेगा .मेरे साथ अंजु(अनु) चौधरी. Labels: एक चिट्ठी अपने प्रिय के नाम. डायरी के पन्ने (कहानी संग्रह)के कुछ हिस्से. Saturday, July 27, 2013. हाय ये कुर्सी! उफ़ ये कुर्सी. उफ़ ये कुर्सी. देखो ना. कर डाले. 2) कि...
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अपनों का साथ: August 2013
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Tuesday, August 27, 2013. प्रेम और जुदाई (एक कृष्ण लीला .उस लीलाधारी की). मंद मंद समीर की. सूर्योदय बेला में. शीतल स्पर्श से तुम्हारे. पुलकित है मन मेरा. उमस भरी रजनी की. अलसायी आँखों में. सुरभित झोंकों से. गुंजित है. बांसुरी वादन तुम्हार. वायु के मृदु अंक में. खिली हर कली कली. मधुर संगीत की धुन पर. भ्रमर, ये अंग अंग मेरा. खुले आकाश तले. तुम्हारी ,हथेलियों पर रख कर. शीश अपना. झूमती हूँ मैं,पल पल. कैसे कहूँ अब तुम से. कुछ किरण ,कुछ धूप. कुछ पकड़ में आने लायक. कुछ मंद,कुछ तेज. हे प्रभु! एक तरंग, एक लहर.
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अपनों का साथ: May 2013
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Saturday, May 25, 2013. जीवन और आत्महत्या के बीच झूलता एक मासूम जीवन .मासूम इस लिए कि वो ये नहीं जानता की आत्महत्या करने वाले ने ऐसा किया क्यों? क्या मज़ाक समझा है. जिंदगी और मौत के बीच. एक पल की नाराज़गी. इस जिंदगी से. और जीवन समाप्त. क्या ये मज़ाक लगता है. यूँ ही ऐसे ही. अपने जीवन को. एक ही झटके में. खत्म कर देना. हर किसी की जिंदगी. दो-राहें पर आती है. हर किसी को जिंदगी की. सोच सताती है. ऐसे यूँ ही लड़ने की बजाए. हथियार डाल देना. और मौत की. बाँहों में खुद को. सौंप देना. तो क्या. और फिर एक ही. लेत&#...
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अपनों का साथ: July 2014
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Saturday, July 26, 2014. नकली चहरे. तेरह साल का परेश रंगमंच के. की सफाई किया करता था. वहाँ रोज़ कोई ना कोई. साहित्य से जुड़ा बड़े नाम का व्यक्ति आता ही रहता था. इसी के चलते. परेश के दिमाग में नित-नई. कहानी/कविता. जन्म लेती. रहती थी तो. वो सब अपनी कॉपी में लिखता रहता था. उसने एक दो बार कोशिश की कि नाटक रचने वाले उसकी कहानी भी पढे पर. हर किसी ने उसे छोटा समझ का नजरंदाज कर दिया. वो मायूस होकर फिर से अपने काम में लग जाता था. ऐसे ही दो साल ओर बीत गए. सामने लगे बैनर पर मशहूर. वहीं ऋतु. महीना और फì...परे...