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लम्हों का सफ़र

लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Saturday 18 July 2015. 496 वो कोठरी. वो कोठरी. वो कोठरी. मेरे नाम की. जहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. मेरे अपने पूरे संसार के साथ. इस संसार को छूने की छूट. या इस्तेमाल की इजाज़त. किसी को नही थी. यहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. ताखे पर क़रीने से रखा एक टेपरिकार्डर. अनगिनत पुस्तकें और सैकड़ों कैसेट. जिस पर अंकित मेरा नाम. ट्रिन-ट्रिन अलार्म वाली घड़ी. खादी के खोल वाली रज़ाई. सफ़ेद मच्छरदानी. सिरहाने पर टॉर्च. लालटेन और सलाई. आराम करती थी. वो कोठरी! Friday 17 July 2015.

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Saturday 18 July 2015. 496 वो कोठरी. वो कोठरी. वो कोठरी. मेरे नाम की. जहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. मेरे अपने पूरे संसार के साथ. इस संसार को छूने की छूट. या इस्तेमाल की इजाज़त. किसी को नही थी. यहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. ताखे पर क़रीने से रखा एक टेपरिकार्डर. अनगिनत पुस्तकें और सैकड़ों कैसेट. जिस पर अंकित मेरा नाम. ट्रिन-ट्रिन अलार्म वाली घड़ी. खादी के खोल वाली रज़ाई. सफ़ेद मच्छरदानी. सिरहाने पर टॉर्च. लालटेन और सलाई. आराम करती थी. वो कोठरी! Friday 17 July 2015.
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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Saturday 18 July 2015. 496 वो कोठरी. वो कोठरी. वो कोठरी. मेरे नाम की. जहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. मेरे अपने पूरे संसार के साथ. इस संसार को छूने की छूट. या इस्तेमाल की इजाज़त. किसी को नही थी. यहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. ताखे पर क़रीने से रखा एक टेपरिकार्डर. अनगिनत पुस्तकें और सैकड़ों कैसेट. जिस पर अंकित मेरा नाम. ट्रिन-ट्रिन अलार्म वाली घड़ी. खादी के खोल वाली रज़ाई. सफ़ेद मच्छरदानी. सिरहाने पर टॉर्च. लालटेन और सलाई. आराम करती थी. वो कोठरी! Friday 17 July 2015.

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लम्हों का सफ़र: 17 July 2015

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Friday 17 July 2015. 495 दूब (घास पर 11 हाइकु). पर 11 हाइकु). बारहों मास. देती बेशर्त प्यार. दुलारी घास! नर्म-नर्म-सी. हरी-हरी ओढ़नी. भूमि ने ओढ़ी! मोती बिखेरे. शबनमी दूब पे,. दूब की गोद. यूँ सुखद प्रतीति. ज्यों माँ की गोद! पीली हो गई. मेघ ने मुँह मोड़ा. दूब बेचारी! धरा से टूटी. ईश के पाँव चढ़ी. पावन दूभी! तमाम रात. रोती रही है दूब. अब भी गीली! नर्म बिछौना. पथिक का सहारा. दूब बेसूध! कभी बनी भोजन,. कृपालु दूर्बा! ठंड व गर्म. मौसम को झेलती. लेबल: दूब.

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लम्हों का सफ़र: 494. दर्द (दर्द पर 20 हाइकु)

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Friday 29 May 2015. 494 दर्द (दर्द पर 20 हाइकु). दर्द पर 20 हाइकु). बहुत चाहा. दर्द की टकसाल. नहीं घटती! दर्द है गंगा. यह मन गंगोत्री -. मालूम होता. ग़र दर्द का स्रोत,. दफ़ना देते! दर्द पिघला. बादल-सा बरसा. ज़माने बाद! किस राह से. मन में दर्द घुसा,. नहीं निकला! टिका ही रहा. मन की देहरी पे,. दर्द अतिथि! बहुत मारा. दर्द ने चाबुक से,. मन छिलाया! तू न जा कहीं! दर्द के बिना जीना. आदत नहीं! यूँ तन्हा किया. ज्यों चकमा दे दिया,. निगोड़ा दर्द! ये आसमान. तमाम रात. आपकी...

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लम्हों का सफ़र: 26 February 2015

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Thursday 26 February 2015. 486 धृष्टता. धृष्टता. जितनी बार मिली तुमसे. ख्वाहिशों ने जन्म लिया मुझमें. जिन्हें यकीनन पूरा नहीं होना था. मगर दिल कब मानता है. यह समझती थी. तुम अपने दायरे से बाहर न आओगे. फिर भी एक नज़र देखने की आरज़ू. और चुपके से तुम्हें देख लेती. नज़रें मिलाने से डरती. जाने क्यों खींचती हैं तुम्हारी नज़रें. अब भी याद है. मेरी कविता पढ़ते हुए. उसमें ख़ुद को खोजने लगे थे तुम. तपाक से कह उठी मैं. पात्र को न खोजना'. पर कह पाना कठिन था. शब्द-सन्ध&...साझ...

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लम्हों का सफ़र: 496. वो कोठरी...

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Saturday 18 July 2015. 496 वो कोठरी. वो कोठरी. वो कोठरी. मेरे नाम की. जहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. मेरे अपने पूरे संसार के साथ. इस संसार को छूने की छूट. या इस्तेमाल की इजाज़त. किसी को नही थी. यहाँ रहती थी मैं. सिर्फ़ मैं. ताखे पर क़रीने से रखा एक टेपरिकार्डर. अनगिनत पुस्तकें और सैकड़ों कैसेट. जिस पर अंकित मेरा नाम. ट्रिन-ट्रिन अलार्म वाली घड़ी. खादी के खोल वाली रज़ाई. सफ़ेद मच्छरदानी. सिरहाने पर टॉर्च. लालटेन और सलाई. आराम करती थी. वो कोठरी! July 18, 2015 6:01 PM.

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लम्हों का सफ़र: 493. सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु)

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लम्हों का सफ़र. मन की अभिव्यक्ति का सफ़र. Saturday 4 April 2015. 493 सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु). सरल गाँव (गाँव पर 10 हाइकु). जीवन त्वरा. बची है परम्परा,. सरल गाँव. घूँघट खुला,. मनिहार जो लाया. हरी चूड़ियाँ! भोर की वेला. बनिहारी को चला. खेत का साथी! पनिहारिन. मन की बतियाती. पोखर सुने! दुआ-नमस्ते. गाँव अपने रस्ते. साँझ को मिले! खेतों ने ओढ़ी. हरी-हरी ओढ़नी. वो इठलाए! असोरा ताके. कब लौटे गृहस्थ. थक हारके! महुआ झरे. चुपचाप से पड़े,. सब विदेश! खंड-खंड टूटता. ग़रीब गाँव! बाछी रम्भाए. April 05, 2015 8:05 AM.

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शब्दों का उजाला: 7/1/11 - 8/1/11

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Followers- From 17 May 2010.'til today. अनुभूति. कर्मभूमि : प्रवासी विशेषांक. गोष्ठी रिपोर्ट. जन्म दिन. डॉ . हरदीप कौर सन्धु. डॉ भावना और डॉ हरदीप सन्धु. ताँका. ताँका -चोका संग्रह. त्रिपदियाँ. वार्षिकांक. हाइकु / ताँका. हाइकु गीत. हाइकु मुक्तक. हाइगा/ताँका. हिन्दी गौरव. Thursday, July 28, 2011. मेरी गुड़िया. Dr Hardeep Kaur Sandhu. Links to this post. Labels: हाइगा. Monday, July 25, 2011. फूल-गुलाब! फूल -हाइकु}. फूलों के संग. रहती है खुशबू. मेरे संग तू! ओस से मुँह धोए. फूल गुलाब! मुस्काई. रब पर चलता.

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शब्द-गुंजन: September 2009

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 14 सितंबर 2009. वो रात. वो रात यूँ गुजरी की,कुछ पता न चला,. क्यों दो दिलो के बीच,आ गया. था फासला ।. तन्हाइयों ने मुझे ,इस कदर घेर लिया था ,. भीड़ में भी ये मन ,अकेला था हो चला ।. न चाहत थी शोहरत की , न जन्नत माँगी थी,. अब न खुदा से,मैं कुछ और मांगता हूँ ,. मेरे मित्र ' अरुल. श्रीवास्तव. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ म&#2...

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मेरा साहित्य: January 2012

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मेरा साहित्य. जीवन की अनुभूतियों और चिन्तन का दर्पण. Friday, 27 January 2012. बादलों की धुंध में. बादलों की धुंध में. सूरज मुस्काये. खोल किवाड़ हौले से. वो धरा पर आये. गुनगुनी धूप दे. स्वेटर सा आराम. अब तो भैया मस्ती में हो. अपने सारे काम. बांध गठरिया आलस भागे. ट्रेन -टिकट कटाए. बादलों की धुंध में. सूरज मुस्काये. पतंगों के पेंच लड़े. और लड़े नैन. दिन में जोश भरा रहा. खामोश रही रैन. सुनहरी धूप में. मन- चिड़िया नहाये. बादलों की धुंध में. सूरज मुस्काये. सोया सोया गाँव. किरणें. Friday, January 27, 2012.

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शब्दों की मुस्कुराहट : Jun 20, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 जून 2014. दिन में फैली ख़ामोशी :). चित्र - ( गूगल से साभार ). जब कोई इस दुनिया से. चला जाता है. वह दिन उस इलाके के लिए. बहुत अजीब हो जाता है. चारों दिशओं में जैसे. एक ख़ामोशी सी छा जाती है. दिन में फैली ख़ामोशी. वहां के लोगो को सुन्न कर देती है. क्योंकि कोई शक्श. इस दुनिया से. रुखसत हो चुका होता है! C) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. संजय भास्‍कर. नई पोस्ट. आसमान...

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शब्दों की मुस्कुराहट : May 3, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). वक्त के साथ चलने की कोशिश - वन्दना अवस्थी दुबे :). ब्लॉगजगत में वन्दना अवस्थी दुबे. एक जाना पहचाना नाम है (अपनी बात - वक्त के साथ चलने की लगातार कोशिश है वंदना जी की ) से प्रभावित है! की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ! मुट्ठी भर दिन. चुटकी भर रातें,. गगन सी चिंताएँ,. किसको बताएं? जागती सी रातें,. दिन हुए उनींदे,. समय का विलोम. कैसे सुलझाएं? नई पोस्ट. भास्कर ...शब्...

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शब्दों की मुस्कुराहट : Nov 20, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 नवंबर 2014. दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप - आशालता सक्सेना :). इसी के साथ बहुत सी यादें भी जुडी हुई है! आशा जी कि कलम से :-. कुछ तो ऐसा है तुम में. य़ुम्हारी हर बात निराली है. कोई भावना जाग्रत होती है. एक कविता बन जाती है! लिखते लिखते कलम नहीं थकती. हर रचना कुछ कहती है. हर किताब को सहेज कर रखूँगा! कवयित्री (. आशा सक्सेना. C ) संजय भास्कर. भास्...शब्...

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शब्दों की मुस्कुराहट : Aug 25, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 25 अगस्त 2014. वो जब लिखती हैं कागज पर अपना दिल निकाल कर रख देती है - अनुलता राज नायर :). वो जब लिखती है तो बस कागज़ पर अपना अपना दिल निकाल कर रख देती है ऐसी ही है लेखिका अनुलता राज नायर. कुछ लाइन पेश है :). एक शोख़ नज़्म. फिसल कर मेरी कलम से. बिखर गयी. धूसर आकाश में! भीग गया हर लफ्ज़. बादलों के हल्के स्पर्श से. और वो बन गयी. एक सीली उदास नज़्म! तभी मैंन&...पुर&#2366...

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 06 फ़रवरी 2015. मेरी नजर से चला बिहारी ब्लॉगर बनने - संजय भास्कर. सलिल वर्मा. जी नाम तो आप सभी जानते ही हो अरे भईया वही चला बिहारी ब्लॉगर बनने. पर लिखे या एकलव्य. दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं. जिस तरह शाख से तोड़े हुए इक पत्ते का रंग. माँद पड़ जाता है कुछ रोज़ अलग शाख़ से रहकर. ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद. C ) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. भास्क...भास...

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Lamhon Ke Jharokhe Se. कुछ लम्हे कभी ख़त्म नहीं होते. हमारी यादों में ठहर जाते हैं, "फ्रीज़" हो जाते हैं. यादों की झोली से निकाले हुए ऐसे ही कुछ ठहरे हुए लम्हे. Monday, May 25, 2015. बेअदब सी पर गज़ब सी. मनमर्ज़ियाँ! कोई CCD, Barista, Star Bucks अपनी प्रीमियम कॉफ़ी से आत्मा को यूँ छू के बताये तो जानू. अन्तरयात्रा. तुम्हारे लिये. बांवरा मन. Friday, February 27, 2015. कलाइयों से खोल दो ये नब्ज़ की तरह धड़कता वक़्त तंग करता है. तुम बिन. तुम्हारे लिये. बांवरा मन. मेरा कुछ सामान. रिश्ते. Thursday, January 22, 2015.

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