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शब्दों का उजाला: 7/1/11 - 8/1/11
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Followers- From 17 May 2010.'til today. अनुभूति. कर्मभूमि : प्रवासी विशेषांक. गोष्ठी रिपोर्ट. जन्म दिन. डॉ . हरदीप कौर सन्धु. डॉ भावना और डॉ हरदीप सन्धु. ताँका. ताँका -चोका संग्रह. त्रिपदियाँ. वार्षिकांक. हाइकु / ताँका. हाइकु गीत. हाइकु मुक्तक. हाइगा/ताँका. हिन्दी गौरव. Thursday, July 28, 2011. मेरी गुड़िया. Dr Hardeep Kaur Sandhu. Links to this post. Labels: हाइगा. Monday, July 25, 2011. फूल-गुलाब! फूल -हाइकु}. फूलों के संग. रहती है खुशबू. मेरे संग तू! ओस से मुँह धोए. फूल गुलाब! मुस्काई. रब पर चलता.
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शब्द-गुंजन: September 2009
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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 14 सितंबर 2009. वो रात. वो रात यूँ गुजरी की,कुछ पता न चला,. क्यों दो दिलो के बीच,आ गया. था फासला ।. तन्हाइयों ने मुझे ,इस कदर घेर लिया था ,. भीड़ में भी ये मन ,अकेला था हो चला ।. न चाहत थी शोहरत की , न जन्नत माँगी थी,. अब न खुदा से,मैं कुछ और मांगता हूँ ,. मेरे मित्र ' अरुल. श्रीवास्तव. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ म...
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मेरा साहित्य: January 2012
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मेरा साहित्य. जीवन की अनुभूतियों और चिन्तन का दर्पण. Friday, 27 January 2012. बादलों की धुंध में. बादलों की धुंध में. सूरज मुस्काये. खोल किवाड़ हौले से. वो धरा पर आये. गुनगुनी धूप दे. स्वेटर सा आराम. अब तो भैया मस्ती में हो. अपने सारे काम. बांध गठरिया आलस भागे. ट्रेन -टिकट कटाए. बादलों की धुंध में. सूरज मुस्काये. पतंगों के पेंच लड़े. और लड़े नैन. दिन में जोश भरा रहा. खामोश रही रैन. सुनहरी धूप में. मन- चिड़िया नहाये. बादलों की धुंध में. सूरज मुस्काये. सोया सोया गाँव. किरणें. Friday, January 27, 2012.
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शब्दों की मुस्कुराहट : Jun 20, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 जून 2014. दिन में फैली ख़ामोशी :). चित्र - ( गूगल से साभार ). जब कोई इस दुनिया से. चला जाता है. वह दिन उस इलाके के लिए. बहुत अजीब हो जाता है. चारों दिशओं में जैसे. एक ख़ामोशी सी छा जाती है. दिन में फैली ख़ामोशी. वहां के लोगो को सुन्न कर देती है. क्योंकि कोई शक्श. इस दुनिया से. रुखसत हो चुका होता है! C) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. संजय भास्कर. नई पोस्ट. आसमान...
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शब्दों की मुस्कुराहट : May 3, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). वक्त के साथ चलने की कोशिश - वन्दना अवस्थी दुबे :). ब्लॉगजगत में वन्दना अवस्थी दुबे. एक जाना पहचाना नाम है (अपनी बात - वक्त के साथ चलने की लगातार कोशिश है वंदना जी की ) से प्रभावित है! की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ! मुट्ठी भर दिन. चुटकी भर रातें,. गगन सी चिंताएँ,. किसको बताएं? जागती सी रातें,. दिन हुए उनींदे,. समय का विलोम. कैसे सुलझाएं? नई पोस्ट. भास्कर ...शब्...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Nov 20, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 नवंबर 2014. दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप - आशालता सक्सेना :). इसी के साथ बहुत सी यादें भी जुडी हुई है! आशा जी कि कलम से :-. कुछ तो ऐसा है तुम में. य़ुम्हारी हर बात निराली है. कोई भावना जाग्रत होती है. एक कविता बन जाती है! लिखते लिखते कलम नहीं थकती. हर रचना कुछ कहती है. हर किताब को सहेज कर रखूँगा! कवयित्री (. आशा सक्सेना. C ) संजय भास्कर. भास्...शब्...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Aug 25, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 25 अगस्त 2014. वो जब लिखती हैं कागज पर अपना दिल निकाल कर रख देती है - अनुलता राज नायर :). वो जब लिखती है तो बस कागज़ पर अपना अपना दिल निकाल कर रख देती है ऐसी ही है लेखिका अनुलता राज नायर. कुछ लाइन पेश है :). एक शोख़ नज़्म. फिसल कर मेरी कलम से. बिखर गयी. धूसर आकाश में! भीग गया हर लफ्ज़. बादलों के हल्के स्पर्श से. और वो बन गयी. एक सीली उदास नज़्म! तभी मैंन&...पुरा...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Feb 6, 2015
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 06 फ़रवरी 2015. मेरी नजर से चला बिहारी ब्लॉगर बनने - संजय भास्कर. सलिल वर्मा. जी नाम तो आप सभी जानते ही हो अरे भईया वही चला बिहारी ब्लॉगर बनने. पर लिखे या एकलव्य. दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं. जिस तरह शाख से तोड़े हुए इक पत्ते का रंग. माँद पड़ जाता है कुछ रोज़ अलग शाख़ से रहकर. ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद. C ) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. भास्क...भास...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Sep 8, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 08 सितंबर 2014. बारिश की वह बूँद :). बारिश की वह बूँद. जो मेरे कमरे की खिड़की के. शीशे पर. फिसल रही थी. जिसे मैं घंटो से निहार रहा था. उसे देख बस मन में. एक ही ख्याल आ रहा था. जो बूँद इस. शीशे को भीगा. रही है. वैसे ही काश. भीग जाए मेरा मन ! C) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. संजय भास्कर. 50 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. My site is worth.