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.: August 2008
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ऑनलाइन रेडियो - - -. मैने पीना कब. मैने पीना कब सीखा था? मैने जीना कब सीखा था? एक बोतल जो टूट गयी तो,. तो महफ़िल सारी रूठ गयी॥. ये दुनिया एक महफ़िल है. और हम इसके मेहमाँ हैं,. हैं कुछ साक़ी और कुछ आशिक़. उम्मीदें हैं ,कुछ अरमाँ हैं॥. आज अगर कुछ शब्द बहे,. तो आखिर दिल से कौन कहे,. प्यार वफ़ा कसमें और वादे. अब इनकी पीड़ा कौन सहे? पीड़ा को इतिहास बता कर. पीना मैने अब सीखा है।. शायद लोग और कुछ कह दें. पर जीना मैने अब सीखा है॥. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. पर कोई, जो कहे सच्चे मन स&#...जरुरत नहीं...देख...
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.: March 2009
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ऑनलाइन रेडियो - - -. ये दूर जाने वाले. ये दूर जाने वाले कभी तो पलट के देखा होता,. एक साथी जो तेरा था वो राह में छूट गया! प्यारे से बंधन को जो हम निभा रहे थे,. न जाने किसकी गलती से वो टूट गया! अब तो तन्हाईया और गम ही संग हैं,. और साथ देने को आँखों से आँसू भी छूट गया! न जाने कितने रंग दिखायेगी ये जिंदगी,. जब जिंदगी का सितारा ही टूट गया! जिंदगी में प्यार का जो अनमोल खजाना था,. वो न जाने कौन अनजाना लूट गया! दो पल की ये जिंदगी अब नजर आती है,. नजरो का सपना जब से टूट गया! Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. सु...
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.: तुम्हारी नजर झुके.....
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ऑनलाइन रेडियो - - -. तुम्हारी नजर झुके. तुम्हारी नजर झुके तो शाम हो जाये. मयखाने में भीड़ जाम पे जाम हो जाये. तुम चाहो तो कुछ भी कर दो. अगर पानी छु दो तो शराब हो जाये. तुम्हारी नजर तीर तलवार से भी बढ़कर है. अगर चाहो तो शहर में कत्ले आम हो जाये. अपने चाहने वालो की दीवानगी तो देखो. उनकी हर ख़ुशी तुम्हारे नाम हो जाये. मैं दुआ करता हूँ रब से. खुदा से भी ऊपर तेरा मुकाम हो जाये. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. Subscribe to: Post Comments (Atom). Followers of This Blog.
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.: July 2010
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ऑनलाइन रेडियो - - -. तुम्हारी नजर झुके. तुम्हारी नजर झुके तो शाम हो जाये. मयखाने में भीड़ जाम पे जाम हो जाये. तुम चाहो तो कुछ भी कर दो. अगर पानी छु दो तो शराब हो जाये. तुम्हारी नजर तीर तलवार से भी बढ़कर है. अगर चाहो तो शहर में कत्ले आम हो जाये. अपने चाहने वालो की दीवानगी तो देखो. उनकी हर ख़ुशी तुम्हारे नाम हो जाये. मैं दुआ करता हूँ रब से. खुदा से भी ऊपर तेरा मुकाम हो जाये. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. मुझ को ढूढ़ते है वो . शाम होती है एक दर्द की रात लिए. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan.
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.: September 2008
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ऑनलाइन रेडियो - - -. सारी जिन्दगी जीते रहे. सारी जिन्दगी जीते रहे हम ख्वाबों में. होती नहीं खुशबू कभी काग़जी गुलाबों में. जुदा हो गए हम मिलने से पहले ही. कुछ तो रही है कमी हमारे भी हिसाबों में. भूल हो गई हमसे उनको समझने में ही. छिपा रखा था उसने खुद को जो हिज़ाबों में. न रहा कोई हमसे मुहब्बत करने वाला अब. हम भी तो हैं अब जहां के खाना खराबों में. मुहब्बत में वो सब नज़र नहीं आया कभी. हमने जो कुछ भी पढ़ा था किताबों में. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. मरता नहीं कोई. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. यादí...
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.: July 2009
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ऑनलाइन रेडियो - - -. इक आरजू है. इक आरजू है पूरी परवरदिगार करे,. मैं देर से जाऊं और वो मेरा इंतजार करे! अपने हाथों से संवारूं जुल्फें उसकी,. वो शरमा कर मोहब्बत का इकरार करे! लिपट जाये मुझसे आलम-ए-मदहोशी में,. और जोशों-जूनून में मोहब्बत का इज़हार करे! जब उसे छोड़ कर जाना चाहूँ मैं,. वो रोके इक और रात का इसरार करे! क़सम खुदा की मैं किसी और का हो नहीं सकता,. ये वादा-ए-वफ़ा वो बार बार करे! Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. आज अचानक फिर से. सब छोड़ के तुम पास थे. फिर हाथ तेरा थामकर. जब एक दिल दूसर...सुल...
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.: November 2009
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ऑनलाइन रेडियो - - -. धीरे से सरकती है. धीरे से सरकती है रात उस के आंचल की तरह,. उस का चेहरा नजर आता है झील में कमल की तरह,. मुद्दतों बाद उसको देखा तो जिस्म-ओ-जान को यूं लगा,. प्यासी जमीन पे जैसे कोई बरस गया बादल की तरह,. रोज कहती है बांहों के घेरे में रातभर सुलाऊँगी,. सरे-शाम ही मुझे आज फिर सुला गयी वो कल की तरह,. उस का शरमाना भी मुझे मात देता है,. उसकी तो हर अदा है किसी खामोश कातिल की तरह,. धीरे से सरकती है रात उसके आंचल की तरह. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. Subscribe to: Posts (Atom).
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.: मुझ को ढूढ़ते है वो ....
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ऑनलाइन रेडियो - - -. मुझ को ढूढ़ते है वो . शाम होती है एक दर्द की रात लिए. रुलाती है बहुत दिल की बात लिए. वफा करके बहुत ही दोस्तों. दिल रोता है आँखों में आंसू लिए. कभी जिनकी निगरानी हम किया करते थे. वही आज हमें ढूढ़ते है खंजर को हाथ लिए. गमो के समंदर को वो एक नाटक करार देते है. मुझ को ढूढ़ते है वो दुश्मन को साथ लिए. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. Subscribe to: Post Comments (Atom). Followers of This Blog. कविता संग्रह - - - - -. तुम्हारी नजर झुके.
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.: May 2009
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ऑनलाइन रेडियो - - -. जिसका किया मैंने इंतज़ार. जिस का किया मैंने इंतज़ार ,. कभी मिला नहीं मुझे उसका प्यार! अब दोबारा नहीं होगा ये मुझसे ,. होता नहीं है ये बार बार! मिला कभी उससे तो पूछूँगा ,. क्या कम था तुम्हारे लिए मेरा प्यार! एक बार कहा होता की तुम्हें दिल दिया है ,. एक बार तो किया होता तुमने इकरार! जिस दिन से दिल ने चाह है तुझे ,. हर लम्हा ऐसा लगा की आ गयी हो बहार! अय काश की तूने एक बार कहा होता ,. जिसका किया मैंने इंतज़ार ,. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. फिर भ&...
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.: May 2010
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ऑनलाइन रेडियो - - -. तुम आँखों से बोलो. शब्दों को अधरों पर रख कर दिल के भेद न खोलो. मैं आँखों से सुन सकता हूँ , तुम आँखों से बोलो. संबंधों की कठिन धारा पर चलना बहुत कठिन है. पग धरने से पहले अपने विश्वासों को तोलो! मैं आँखों से सुन सकता हूँ तुम आँखों से बोलो. तुम्हारे तीखे बाण ह्रदय को बेधित कर देते हैं. सत्य बहुत कड़वा होता है, सोच समझ के बोलो. मैं आँखों से सुन सकता हूँ , तुम आँखों से बोलो! कैसे करोगी जहमत, तुम इनायत-ए-इश्क पर. Posted by :- Mr. Rakesh Ranjan. रंजिश ही सही. शब्दार्थ:. हम भी दरि...