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अजेय की कविताएं: September 2010
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अजेय की कविताएं. Saturday, 18 September 2010. हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका 'असिक्नी' आपकी नज़र. तकरीबन तीन साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद असिक्नी का दूसरा अंक. प्रकाशित हो गया है. *असिक्नी *. कर रहें हैं।. अंक पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें. स्पिति के प्रथम आधुनिक हिन्दी कवि मोहन सिंह. की रपट। परमानन्द. संस्मरण। विजेन्द्र. की किताब आधी रात. के रंग पर बलदेव कृष्ण घरसंगी. का विवरणात्मक लेख। लाहुली समाज के विगत ...ज्ञानप्रकाश विवेक. मुरारी शर्मा. और सरोज परमार. सहित गनी. हिम&#...
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अजेय की कविताएं: कुछ बातें काम की
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अजेय की कविताएं. Monday, 26 April 2010. कुछ बातें काम की. भाई की क्षणिकाएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। अजेय भाई, आप इतने नाराज़ हो जाओगे सोचा न था! खैर आपकी याद में आपकी ही कुछ कविताएँ:-. चार क्षणिकाएँ. सुनो,. आज ईश्वर काम पर है. तुम भी लग जाओ. आज प्रार्थना नहीं सुनी जाएगी।. उसके दो हाथों में. चार काम दे दिए. बदतमीज़,. लातों से दरवाज़ा खोलता है! आँखें आशंकित थीं. हाथों ने कर दिखाया।. काम की जगह पर. सब कूड़ा बिखरा था. बस काम चमक रहा था. आग सा।. 26 April 2010 at 19:59.
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आज की ग़ज़ल: 08/29/13
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Thursday, August 29, 2013. सुरेन्द्र चतुर्वेदी जी की एक ग़ज़ल. तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ. हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ. कई थे लोग किनारों से देखने वाले. मगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआ. हमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपने. उन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआ. रहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों में. यही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआ. लगी जो आग तो सोचा उदास जंगल ने. हवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआ. सतपाल ख़याल. Subscribe to: Posts (Atom). अब तक का सफ़र. पुरुष...पूर...
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आज की ग़ज़ल: 09/19/13
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Thursday, September 19, 2013. फ़ानी जोधपुरी. रात की बस्ती बसी है घर चलो. तीरगी ही तीरगी है घर चलो. क्या भरोसा कोई पत्थर आ लगे. जिस्म पे शीशागरी है घर चलो. हू-ब-हू बेवा की उजड़ी मांग सी. ये गली सूनी पड़ी है घर चलो. तू ने जो बस्ती में भेजी थी सदा. लाश उसकी ये पड़ी है घर चलो. क्या करोगे सामना हालत का. जान तो अटकी हुई है घर चलो. कल की छोड़ो कल यहाँ पे अम्न था. अब फ़िज़ा बिगड़ी हुई है घर चलो. तुम ख़ुदा तो हो नहीं इन्सान हो. घर की बत्ती जल रही है घर चलो. सतपाल ख़याल. Subscribe to: Posts (Atom). पुरु...
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आज की ग़ज़ल: 10/22/14
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Wednesday, October 22, 2014. दीपावली की शुभकामनाएँ. सतपाल ख़याल. Subscribe to: Posts (Atom). अब तक का सफ़र. 8217;साग़र’ पालमपुरी. अनमोल शुक्ल और वीरेन्द्र जैन. अमित रंजन गोरखपुरी की ग़ज़ल. अहमद अली बर्की की ग़ज़लें. आरपी. शर्मा महरिष की तीन ग़ज़लें. कँवल ज़िआई. कवि कुलवंत जी की एक ग़ज़ल. कौन चला बनवास रे जोगी. ग़ज़ल के बारे में. चंद्रभान भारद्वाज- परिचय और तीन ग़ज़लें. जगदीश रावतानी. ज़हीर कुरैशी जी की ग़ज़लें. डा. दरवेश भारती की एक ग़ज़ल. तरही ग़ज़लें. तलअत इरफ़ानी. तौसीफ़ तबस्सुम. धीरज आमेटा. सतपाल ख&#...
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आज की ग़ज़ल: 04/23/14
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Wednesday, April 23, 2014. दानिश भारती. पाँव जब भी इधर-उधर रखना. अपने दिल में ख़ुदा का डर रखना. रास्तों पर कड़ी नज़र रखना. हर क़दम इक नया सफ़र रखना. वक़्त, जाने कब इम्तेहां माँगे. अपने हाथों में कुछ हुनर रखना. मंज़िलों की अगर तमन्ना है. मुश्किलों को भी हमसफ़र रखना. खौफ़, रहज़न का तो बजा, लेकिन. रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना. सख्त लम्हों में काम आएँगे. आँसुओं को सँभाल कर रखना. चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे. बंदिशें मुझ पे, सोच कर रखना. अपना किरदार मोतबर रखना. सतपाल ख़याल. Subscribe to: Posts (Atom). अब तक का सफ़र.
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आज की ग़ज़ल: 06/26/14
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Thursday, June 26, 2014. मयंक अवस्थी. बम फूटने लगें कि समन्दर उछल पड़े. कब ज़िन्दगी पे कौन बवंडर उछल पड़े. दुश्मन मिरी शिकस्त पे मुँह खोल कर हँसा. और दोस्त अपने जिस्म के अन्दर उछल पड़े. गहराइयाँ सिमट के बिखरने लगीं तमाम. इक चाँद क्या दिखा कि समन्दर उछल पड़े. मत छेड़िये हमारे चरागे –खुलूस को. शायद कोई शरार ही , मुँह पर उछल पड़े. घोड़ों की बेलगाम छलाँगों को देख कर. बछड़े किसी नकेल के दम पर उछल पड़े. गहरी नहीं थी और मचलती थी बेसबब. ऐसी नदी मिली तो शिनावर उछल पड़े. सतपाल ख़याल. Subscribe to: Posts (Atom). पवने...
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आज की ग़ज़ल: 05/23/14
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Friday, May 23, 2014. सिराज फ़ैसल खान. ज़मीं पर बस लहू बिखरा हमारा. अभी बिखरा नहीं जज़्बा हमारा. हमें रंजिश नहीं दरिया से कोई. सलामत गर रहे सहरा हमारा. मिलाकर हाथ सूरज की किरन से. मुखालिफ़ हो गया साया हमारा. रकीब अब वो हमारे हैं जिन्होंने. नमक ताज़िन्दगी खाया हमारा. है जब तक साथ बंजारामिज़ाजी. कहाँ मंज़िल कहाँ रस्ता हमारा. तअल्लुक तर्क कर के हो गया है. ये रिश्ता और भी गहरा हमारा. बहुत कोशिश की लेकिन जुड़ न पाया. तुम्हारे नाम में आधा हमारा. इधर सब हमको कातिल कह रहे हैं. सतपाल ख़याल. Subscribe to: Posts (Atom).
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प्रकाश बादल: अनुराग के प्रयासों से पूरा हुआ धर्मशाला स्टेडियम का सपना
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रविवार, 3 फ़रवरी 2013. अनुराग के प्रयासों से पूरा हुआ धर्मशाला स्टेडियम का सपना. अनुराग ठाकुर. धर्मशाला क्रिकेट स्टेडिम का मनमोहक दृष्य. लोग उल्लास से भरे हुए मैच का आनन्द ले रहे थे और मेरा ध्यान इस. इसीलिए बहुत से विद्वान सपना देखने पर ज़ोर देते हैं, परंतु सपना देखना आम आदमी के बस की बात भी नहीं।. धर्मशाला स्टेडियम में विजेता भारतीय टीम का फ़ोटो. यही वक्त था कि अनुराग ने हिमाचल क्रिकेट स्टेडियम. 25000 दर्शकों के बैठने. की क्षमता वाले, धौलाधार की. स्थापित कर रही है।. Posted by Prakash badal. पत्रक...