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मुक्ति के स्वर: March 2013
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Friday, March 8, 2013. चीख का पार्श्व संगीत : आशु वर्मा. कम्प्यूटर पर क्लिक करते ही. उग आते हैं किसी बड़े आर्किटेक्ट के ग्राफिक्स. काले स्क्रीन पर संतरी-हरी-नीली-पीली. मुर्दा रेखाओं के साथ खड़े हो जाते हैं अपार्टमेन्ट. बेडरूम, डिजाइनर टॉयलेट. और मोडयुलर किचेन के साथ. ठीक उसी समय. रहने लगता है वहां कोई नया शहर. दे दिया जाता है उसे. कोई नया नाम. चमचमाते कांच वाले अजीब किस्म के. 8220; कारखाने. आसमान छूती इमारतें. टोल-टैक्स बूथ. जिसमें फर&...और समझना ...
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मुक्ति के स्वर: December 2012
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Sunday, December 30, 2012. समाज को लड़कियों के रहने लायक बनाओ. एक लडकी मर गयी! तो क्या हुआ. रोज़ लड़कियां मरती हैं. ! नहीं, हम उस लडकी की बात कर रहें हैं जो. आप सब पिछले. दिसम्बर की रात को उसने दम तोड़ दिया. मीडिया के माध्यम से हम इस लड़की को दामिनी के नाम से जानते है. दामिनी. पहली लड़की नहीं थी, और दामिनी आखिरी लड़की भी नहीं है. न जाने. मनुस्मृति. की तरह ढाला जाता है और दूसरे को. मर्दानगी. हिंसा. मर्दानगी. कर न रखें, वे. चौकीदारी. के साथ न ...पुल...
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मुक्ति के स्वर: January 2016
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Saturday, January 23, 2016. डॉ नूतन डिमरी गैरोला की दो कवितायेँ. स्त्रियाँ. गुजर जाती हैं अजनबी से जंगलों से. जानवरों के भरोसे. जिनका सत्य वे जानती हैं. सड़क के किनारे तख्ती पे लिखा होता है. आगे हाथियों से खतरा है. और वे पार कर चुकी होती हैं जंगल सारा. फिर भी गुजर नहीं पातीं. स्याह रात में सड़कों और बस्तियों से. काँपती है रूह उनकी. तख्तियाँ. उनके विश्वास की सड़क पर. लाल रंग से जड़ी जा चुकी हैं. चेताती है स्त्री. मत आना तुम यहाँ. मैं नही. याद रखना. यह पर...
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मुक्ति के स्वर: March 2014
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Saturday, March 8, 2014. पितृसत्ता का मतलब क्या है? सभी बहनों को ८ मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर क्रन्तिकारी अभिवादन और शुभकामनाएँ! नारी मुक्ति की बुनियादी शर्त है पितृसत्ता का अंत. मुक्ति के स्वर पत्रिका के अंक 15 में प्रकाशित). आशु वर्मा. Labels: अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस. नारी चेतना. नारी मुक्ति. पितृसत्ता. Friday, March 7, 2014. औरतों की कविताएँ : शुभा. मिट्टी के चूल्हे. और झाँपी बनाती हैं. औरतों की इच्छाएं. वह घर में और बाहर. वे अपने...
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मुक्ति के स्वर: परवीन शाकिर की गजल
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Friday, January 6, 2012. परवीन शाकिर की गजल. बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए. मौसम के हाथ भीग के सफ्फाक हो गए. बादल को क्या खबर कि बारिश की चाह में. कितने बुलंद-ओ-बाला शजर खाक हो गए. जुगनू को दिन के वक्त पकड़ने की जिद करें. बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए. लहरा रही है बर्फ की चादर हटा के घास. सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए. जब भी गरीब-ए-शहर से कुछ गुफ्तगू हुई. लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गए. आशु वर्मा. परवीन शाकिर. साहित्य. स्त्रि...वे कहत...
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मुक्ति के स्वर: September 2010
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Wednesday, September 29, 2010. कविता- जो कुछ देखा-सुना, समझा, कह दिया- निर्मला पुतुल. बिना किसी लाग-लपेट के. तुम्हेँ अच्छा लगे, ना लगे, तुम जानो. चिकनी-चुपड़ी भाषा की. उम्मीद न करो मुझसे. जीवन के उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते. मेरी भाषा भी रुखड़ी हो गई है. मैं नहीं जानती कविता की परिभाषा. छंद, लय, तुक का. और न ही शब्दों और भाषाओँ में है. मेरी पकड़. घर-गृहस्ती सँभालते. लड़ते अपने हिस्से की लड़ाई. बोला-बतियाया. समय की स्लेट पर. पर याद रखो. 8 मार्च...यह पर...
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मुक्ति के स्वर: January 2012
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Wednesday, January 25, 2012. बनावटी रूप - मार्ग पियर्सी. लुभावाने गमले में. बोनसाई पौधा,. किसी पर्वत के निकट. अस्सी फुट ऊँचा पेड़ होता. अगर ठूंठ ना हो जाता बिजली गिरने से. मगर माली ने. बड़े जतन से छांटा इसे. नौ इंच लंबा है यह. हर रोज जब छांटता है टहनी. माली गुनगुनाता है,. यही है तुम्हारा स्वाभाव. छोटा और कोमल होना,. घरेलु और दुर्बल,. कितने खुशकिस्मत, नन्हे पेड़,. शुरू-शुरू में ही बाधित करना. शुरू करना होता है. बाधित पैर,. आशु वर्मा. चला न करो. लेन...
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मुक्ति के स्वर: पितृसत्ता का मतलब क्या है ?
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Saturday, March 8, 2014. पितृसत्ता का मतलब क्या है? सभी बहनों को ८ मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर क्रन्तिकारी अभिवादन और शुभकामनाएँ! नारी मुक्ति की बुनियादी शर्त है पितृसत्ता का अंत. मुक्ति के स्वर पत्रिका के अंक 15 में प्रकाशित). आशु वर्मा. Labels: अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस. नारी चेतना. नारी मुक्ति. पितृसत्ता. Subscribe to: Post Comments (Atom). लोकप्रिय पोस्ट. पितृसत्ता का मतलब क्या है? स्त्रियाँ गुजर जात&#...गलत हो गया तो? मणिमाला. वे कहत...
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मुक्ति के स्वर: November 2012
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Sunday, November 18, 2012. फिलीस्तीनी बच्चों के लिए लोरी -फैज़. मत रो बच्चे. रो रो के अभी. तेरे अम्मी की आँख लगी है. मत रो बच्चे. कुछ ही पहले. तेरे अब्बा ने. अपने गम से रुख्सत ली है. मत रो बच्चे. तेरा भाई. अपने ख्वाब की तितली पीछे. दूर कहीं परदेस् गया है. मत रो बच्चे. तेरी बाजी का. डोला पराये देश गया है. मत रो बच्चे. तेरे आँगन में. मुर्दा सूरज नहला के गये हैं. चन्दरमा दफना के गये हैं. मत रो बच्चे. गर तू रोयेगा तो ये सब. चाँद और सूरज. स्त्र&#...अंत...
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मुक्ति के स्वर: डॉ नूतन डिमरी गैरोला की दो कवितायेँ
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मुक्ति के स्वर. नारी मुक्ति की दिशा में एक नयी पहल. Saturday, January 23, 2016. डॉ नूतन डिमरी गैरोला की दो कवितायेँ. स्त्रियाँ. गुजर जाती हैं अजनबी से जंगलों से. जानवरों के भरोसे. जिनका सत्य वे जानती हैं. सड़क के किनारे तख्ती पे लिखा होता है. आगे हाथियों से खतरा है. और वे पार कर चुकी होती हैं जंगल सारा. फिर भी गुजर नहीं पातीं. स्याह रात में सड़कों और बस्तियों से. काँपती है रूह उनकी. तख्तियाँ. उनके विश्वास की सड़क पर. लाल रंग से जड़ी जा चुकी हैं. चेताती है स्त्री. मत आना तुम यहाँ. मैं नही. याद रखना. यह पर...