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मेरी रचनाऍ: क्यों भूल जाऊँ मैं
http://tejdhup.blogspot.com/2009/09/blog-post_21.html
मेरी रचनाऍ. सोमवार, 21 सितंबर 2009. क्यों भूल जाऊँ मैं. स्मृति के दंश, पीड़ा ,छटपटाहट. और तुम्हारा खिलखिलाना. काश भूल जाऊँ मैं. अनभिज्ञता, उपहास , ग्लानि बोध. और तुम्हारा मुझसे नज़रें चुराना. काश भूल जाऊँ मैं. दु:स्साहस , आलोचनाएं , आत्म प्रवंचना. और तुम्हारा शर्म से झुका सिर. काश भूल जाऊँ मैं. बस याद रहे. वो शाम का धुँघलका. गाँव की पगडंडी पर. गाय बकरियों के धर लौटते झुँड. उनके खुर से उड़ी घूल के बीच. तुम्हारा मुझसे टकराना. और आँचल के छोर को ,. और तुम्हारा सहज समर्पण. लेबल: कविता. हिंदी. Lajawaab . s...
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मेरी रचनाऍ: April 2011
http://tejdhup.blogspot.com/2011_04_01_archive.html
मेरी रचनाऍ. बुधवार, 27 अप्रैल 2011. बहुत अच्छा किया. हमीं से सीखा दोड़ना. हमें गिरा दिया. बहुत अच्छा किया. शुक्रिया. बंद नहीं होगी. फिर भी. ये पाठशाला. कभी कभी ऐसे. लोगों से भी. पड सकता है पाला. जीते तुम. जश्न मनाओ. याद कभी करना. किस से सीखी. वर्णमाला. प्रस्तुतकर्ता Vipin Behari Goyal. 6 टिप्पणियाँ. लेबल: hindi poem. रविवार, 17 अप्रैल 2011. तेज़ धूप का सफ़र. छाँव का सुकून. मर्ग मरीचिका बन. छलता रहा. तेज़ धूप का सफ़र. चलता रहा. इस तपिश में. ये कौनसी कशिश है. क्या सोच कर ये फूल. नई पोस्ट. Cogito, ergo sum".
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मेरी रचनाऍ: July 2009
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मेरी रचनाऍ. शुक्रवार, 31 जुलाई 2009. सूखे हुए फूल. FtUnxh tc Bgjko gksrh gS]. Gj lqcg 'kke dh ckr gksrh gS A. Cgqr [kkeks'k gks tkrk gS tc lkjk vkye. Rc [kqn ls [kqn dh ckr gksrh gS. W¡ gh [kks tkrh gs rqe tc ikl gksdj Hkh. Eq s Hkh ,d xqe'kqnk dh ryk'k gksrh gS. Tc Hkh gks tkrk gw¡ mnkl g¡lrs g¡lrs. Kjksa esa rsjh csoQkbZ dh ckr gksrh gS A. Tc Hkh vkrk gS lkou is I;kj eq dks. Fny ds gj dksus esa cx kor dh vkokt gksrh gS. Tc Hkh ns[krk gw¡ Qwykas dks eqLdqjkrs gq,. Exj fQj Hkh ]. Kj ds lkeus yxs. ते...
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मेरी रचनाऍ: बहुत अच्छा किया...
http://tejdhup.blogspot.com/2011/04/blog-post_27.html
मेरी रचनाऍ. बुधवार, 27 अप्रैल 2011. बहुत अच्छा किया. हमीं से सीखा दोड़ना. हमें गिरा दिया. बहुत अच्छा किया. शुक्रिया. बंद नहीं होगी. फिर भी. ये पाठशाला. कभी कभी ऐसे. लोगों से भी. पड सकता है पाला. जीते तुम. जश्न मनाओ. याद कभी करना. किस से सीखी. वर्णमाला. प्रस्तुतकर्ता Vipin Behari Goyal. लेबल: hindi poem. 6 टिप्पणियां:. 28 अप्रैल 2011 को 2:17 am. अरसे के बाद आप की कृति पढने को मिली. जीते तुम. जश्न मनाओ. याद कभी करना. किस से सीखी. वर्णमाला. उत्तर दें. 31 मई 2011 को 6:20 am. उत्तर दें. जश्न मनाओ. मुआफ...
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मेरी रचनाऍ: December 2012
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मेरी रचनाऍ. शनिवार, 8 दिसंबर 2012. उस तरफ क्या है. उस तरफ क्या है, एक लम्बा मौन , गहरी चुप्पी , समुद्र सी गंभीरता,. या भीषण हाहाकार, एक आर्तनाद , उत्तंग लहरें. इस का अन्त कहाँ हैं, आल्हाद् की विपुलता में, चरम सुख में, परमानन्द में ,. या तनावपूर्ण शून्यता गहन नीरव अंधकार और अपेक्षा में. क्यों चल रहे हो उस राह पे , यह तो सोचो कि तुम क्या खो के क्या पा रहे हो. यह श्वास और स्पन्दन , यह धुटन और क्रन्दन. सर्ष्टा नहीं , सृजन तो हो ,. लोभ जो पाप का मूल है. 2 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. Visit My English Literary Blog.
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मेरी रचनाऍ: मैं इसी शहर में हूँ
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मेरी रचनाऍ. बुधवार, 23 सितंबर 2009. मैं इसी शहर में हूँ. मुझ से ग्लानि का बोझ सहा ना जाएगा. तुम मुझे कभी `मसीहा´ मत कहना. मैं भीड़ में खड़ा होकर चिल्ला लुँगा. मुझे मंच पर आने को मत कहना. इस यंत्राणा में भी मैं मुस्करा लेता हूँ. मुझे कहकहा लगाने को मत कहना. उनके जज्बातों को ठेस बहुत. पहुँचेगी. मैं इसी शहर में हूँ उनसे मत कहना. प्रस्तुतकर्ता Vipin Behari Goyal. लेबल: कविता. विपिन बिहारी गोयल. 11 टिप्पणियां:. 23 सितंबर 2009 को 9:04 pm. वाह बहुत खुब।. उत्तर दें. 23 सितंबर 2009 को 10:15 pm. आप इस शहर मे...
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मेरी रचनाऍ: September 2009
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मेरी रचनाऍ. बुधवार, 23 सितंबर 2009. मैं इसी शहर में हूँ. मुझ से ग्लानि का बोझ सहा ना जाएगा. तुम मुझे कभी `मसीहा´ मत कहना. मैं भीड़ में खड़ा होकर चिल्ला लुँगा. मुझे मंच पर आने को मत कहना. इस यंत्राणा में भी मैं मुस्करा लेता हूँ. मुझे कहकहा लगाने को मत कहना. उनके जज्बातों को ठेस बहुत. पहुँचेगी. मैं इसी शहर में हूँ उनसे मत कहना. प्रस्तुतकर्ता Vipin Behari Goyal. 11 टिप्पणियाँ. लेबल: कविता. विपिन बिहारी गोयल. सोमवार, 21 सितंबर 2009. क्यों भूल जाऊँ मैं. काश भूल जाऊँ मैं. बस याद रहे. साहित्य. आकाश कí...
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मेरी रचनाऍ: यत्रांणा से मुक्त कर दो
http://tejdhup.blogspot.com/2009/10/blog-post_12.html
मेरी रचनाऍ. सोमवार, 12 अक्तूबर 2009. यत्रांणा से मुक्त कर दो. यत्रांणा से मुक्त कर दो. रिक्तता मुझको निगल ले. इससे पहले उस दिशा में. प्रस्थान कर दो. व्योम सा व्यापक नहीं हूँ मैं. ना समुद्र सी गहराई मुझ में. मैं तो दीर्ध निश्वासों की कड़ी हूँ. मुझ में अविकल प्राण भर दो. यंत्राणा से मुक्त कर दो. अक्षरों की तिक्तता से जल उठा हूँ. छिन्न संकल्पों को समेटे. कब से खड़ा हूं. मौन का सम्मोहन. हर कोशिका मैं व्याप्त् है. तुम मन को स्पन्दन से भर दो. प्रस्तुतकर्ता Vipin Behari Goyal. लेबल: कविता. बहुत ही स...उत्...
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मेरी रचनाऍ: तेज़ धूप का सफ़र
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मेरी रचनाऍ. रविवार, 17 अप्रैल 2011. तेज़ धूप का सफ़र. छाँव का सुकून. मर्ग मरीचिका बन. छलता रहा. तेज़ धूप का सफ़र. चलता रहा. इस तपिश में. ये कौनसी कशिश है. क्या सोच कर ये फूल. बंजर में खिलता रहा. होंठ कांपे तो थे. मुझे रोकने को मगर. मुंह से तुम्हारे. अलविदा निकला. प्रस्तुतकर्ता Vipin Behari Goyal. 3 टिप्पणियां:. संगीता स्वरुप ( गीत ). 18 अप्रैल 2011 को 12:24 am. वाह .बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. उत्तर दें. 28 अप्रैल 2011 को 2:19 am. बहुत सुन्दर. उत्तर दें. 2 जुलाई 2012 को 1:39 am. उत्तर दें. Cogito, ergo sum".
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मेरी रचनाऍ: बन्द दरवाजों का नहीं अफसोस
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मेरी रचनाऍ. मंगलवार, 3 नवंबर 2009. बन्द दरवाजों का नहीं अफसोस. बन्द दरवाजों का नहीं अफसोस मुझे. खोल दो खिड़कियाँ की दम धुटता है. आह तुमने न सुनी तो न सही. चीखँ पर तो अजनबी भी पलटता है. राह उनको दिखाता है फिसलन कि. और हँसता है जब कोई फिसलता है. वो कह रहा था मुझसे कि बन दरियादिल. आँख में अपनी उनकों, तिनका भी खटकता है. प्रस्तुतकर्ता Vipin Behari Goyal. लेबल: कविता. विपिन बिहारी गोयल. 17 टिप्पणियां:. दिगम्बर नासवा. 4 नवंबर 2009 को 12:15 am. आह तुमने न सुनी तो न सही. उत्तर दें. उत्तर दें. बहुत बहु...