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हिन्दी सागर: जिस समाज में तुम रहते हो
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हिन्दी सागर. Thursday, February 21, 2008. जिस समाज में तुम रहते हो. जिस समाज में तुम रह्ते हो. यदि तुम उसकी एक शक्ति हो. जैसे सरिता की अगणित लहरों में. कोई एक लहर हो. तो अच्छा है. जिस समाज में तुम रहते हो. यदि तुम उसकी सदा सुनिश्चित. अनुपेक्षित आवश्यकता हो. जैसे किसी मशीन में लगे बहुत कल-पुर्जों में. कोई भी कल-पुर्जा हो. तो अच्छा है. जिस समाज में तुम रह्ते हो. यदि उसकी करुणा ही करुणा. तुम को यह जीवन देती है. जैसे दुर्निवार निर्धनता. तो यह जीवन की भाषा में. त्रिलोचन'. मीनाक्षी. February 26, 2008 at 8:58 PM.
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हिन्दी सागर: जो तुम आ जाते (महादेवी वर्मा)
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हिन्दी सागर. Friday, April 15, 2011. जो तुम आ जाते (महादेवी वर्मा). जो तुम आ जाते एक बार. कितनी करुणा कितने सन्देश. पथ में बिछ जाते बन पराग. गाता प्राणों का तार तार. अनुराग भरा उन्माद राग. आँसू लेते वे पथ पखार. जो तुम आ जाते एक बार . हँस उठते पल में आद्र नयन. धुल जाता होठों से विषाद. छा जाता जीवन में बसंत. लुट जाता चिर संचित विराग. आँखें देतीं सर्वस्व वार. जो तुम आ जाते एक बार. मीनाक्षी. Labels: महादेवी वर्मा. जयकृष्ण राय तुषार. जो तुम आ जाते एक बार. जो तुम आ जाते एक बार . April 15, 2011 at 4:12 PM.
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आयुर्वेद मेरा जीवन: नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार
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आयुर्वेद मेरा जीवन. सदस्यता लें. टिप्पणियाँ. टिप्पणियाँ. बुधवार, 26 मई 2010. नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार. नवरात्रि में माँ दुर्गा के औषधि रूपों का पूजन करें. पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे. प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,. तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।. पंचम स्कन्दमातेति षुठ कात्यायनीति च।. सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टम।।. नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता. प्रथम शैलपुत्री (हरड़) -. तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) -. 2 टिप्पणियां:. उत्तर दें. गणतंत्र दिवस...हिन्...
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तस्वीरें भी बोलती हैं...: कच्ची मिट्टी
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तस्वीरें भी बोलती हैं. यहाँ-वहाँ, मतलब-बेमतलब भटकते हुए जो दृश्य कैमरे में कैद किये. सोमवार, 13 जुलाई 2009. कच्ची मिट्टी. कच्ची मिट्टी को दिए कई अनोखे रूप. नंगे जिस्म पे झेलते बारिश, सर्दी, धूप. प्रस्तुतकर्ता. रजनीश 'साहिल. प्रतिक्रियाएँ:. लेबल: कच्ची मिट्टी. ग्राम्य जीवन. तंगहाली. हाथों का हुनर. 1 टिप्पणी:. 6 अगस्त 2009 को 12:31 am. Zakir Ali ‘Rajnish’. उत्तर दें. टिप्पणी जोड़ें. अधिक लोड करें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. बक़लम ख़ुद. रजनीश 'साहिल. अपनी क़लम से. आशियाना.
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मैं और मेरी कविताएं : January 2014
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मुखपृष्ठ. मेरी कविताएं. मंगलवार, 21 जनवरी 2014. मंज़िल की ज़ानिब. लम्हा नहीं थी एक मैं जहान में सदा रही हूँ,. ख़यालों में रहे हमेशा मैं तुमसे जुदा नही हूँ. किस्से गढे इस जीस्त-ए-सफ़र ने हजारों बार ,. शेर-ए- हक़ीक़ी मैं कब से गुनगुना रही हूँ. ग़म-ए-दौरां में मिलती कैसे हैं ये खुशियाँ,. दिल-ए-नादां तुझे मैं कब से समझा रही हूँ. मुमकिन हैं पहचान लेगें इक दिन वे मुझे,. अफ़साना-ए-दिलबर मैं कब से सुना रही हूँ. ख़ुदा करे विसाल-ए-यार हो वह दिन भी आए,. प्रस्तुतकर्ता. संध्या शर्मा. इसे ईमेल करें. मरीचिका. अज्ञा...
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मैं और मेरी कविताएं : February 2014
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मुखपृष्ठ. मेरी कविताएं. सोमवार, 24 फ़रवरी 2014. छोटी सी अभिलाषा. प्रकृति की अनुपम रचना. तुम्हारा विराट अस्तित्व. समाया है मेरे मन में. और मैं . रहना चाहती हूँ हरपल. रजनीगंधा से उठती. भीनी-भीनी महक सी. तुम्हारे चितवन में. चाहती हूँ सिर्फ इतना. कि मेरा हर सुख हो. तुम्हारी स्मृतियों में. और दुःख . केवल विस्मृतियों में! प्रस्तुतकर्ता. संध्या शर्मा. 18 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. आ जाओ वसंत. 5 सप्...
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मैं और मेरी कविताएं : March 2014
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मुखपृष्ठ. मेरी कविताएं. बुधवार, 26 मार्च 2014. सत्ता सुख और लोककल्याण- अभी रोग दूर होना शेष है. प्रथम दौर को शांत करना ही ध्येय नहीं है, प्रायश्चित करने से पाप दूर हुआ अभी रोग दूर होना शेष है।. प्रस्तुतकर्ता. संध्या शर्मा. 10 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: चुनाव. लोककल्याण. सत्ता सुख. शनिवार, 15 मार्च 2014. बिरज में होली रे कन्हाई …. खेलत फाग अबीर हिलमिल. झूमें न्या...दुवार दुव...बिरज म...